कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

मंगलवार, अप्रैल 27, 2010

दर्द भरा किस्सा



जीवन में कैसे कैसे मोड़ आते है ? और क्या- क्या  देखने को मिलता है ? आज मन बहुत ही उदास था,कारण बहुत ही बड़ा था .
मेरे फैशन कॉलेज के मित्रों  में से  एक रविंदर नाम की लड़की है  ..जो बहुत ही हिम्मत वाली है, हमारी दोस्ती को आज तेरह साल हो गए पर  आज भी फ़ोन पर या इन्टरनेट  लाइन पर या  किसी function पर मिलना जुलना होता रहता है ..अभी एक दिन पहले मेरे पास फ़ोन आया की रविंदर के छोटे भाई स्वर्ग सिधार गया... मै तो हेराँ हो गया... क्योंकि कुछ ही घंटो पहेले तो मेरी रविंदर से बात हुई थी.. तब तो ऐसा न था, पर  मैं उसी वक़्त उसके घर के तरफ रवाना  हुआ... वहां पर माहौल बहुत ही ग़मगीन था,  और होने भी था  एक जवान लड़के की मौत जो हुई थी ... रविंदर के छोटे भाई का नाम रमन था... उसने इसी साल बारहवी की परीक्षा दी है, और अगले महीने परिणाम भी आने वाला है , पर उस से पहले ही ये घटना हो गयी ........ लोगो की बातों से पता चला की वह घर के पास पार्क में मृतावस्था में मिला . उस वक़्त उस पार्क मैं कोई नहीं था.. और कुछ लोग तो थे ...पर शायद किसी ने सोचा के वह बेंच पर लेटकर आराम कर रहा होगा.. लेकिन जब बहुत देर हो गयी तो कुछ लोगो को शक होने लगा..   उसको पास ही खेल रहे बच्चों के boll भी लगी पर उसने कोई ही हरकत नहीं की तब किसी ने उसको हिलाया डुलाया तो  तब जाकर पता चला की वह मर चूका है .घर वालो को जब पता चला तो आप लोग तो जानते ही की क्या हाल होता है ?उसी वक़्त पुलिस ने  बॉडी को अपने  कब्जे में करके फ़ौरन पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया  सबका कहना है की उस सतरह साल के लड़के की मौत  जहर खाने से हुई है ...
अब ये सब कैसे हुआ ?और उसने किया है, या किसी ने उसको जहर दिया  या उसने खुद खाया,  ये तो पुलिस ही पता लगाएगी 
वैसे  वह बहुत ही अच्छे स्वभाव का लड़का था किसी का वह बुरा ही नहीं कर सकता था ... पिता की मौत भी तीन साल पहले हो गयी थी ...और साथ साथ ही business भी खतम हो गया था...  रविंदर ही जैसे तैसे करके अपना घर चला रही थी..  अपने छोटे भाई का भी ध्यान रखना और उसकी पढाई का भी ख्याल करना साथ में माँ को भी देखना बहुत ही साहसिक वाला कार्य था 
इन सब मुश्किलों के होते वह शादी कैसे कर सकती थी ? पर जो भी है उसने हर हालात का सामना हँसते ही किया और आज छोटे भाई की मौत ने उसको दहला दिया ...
मैं तो इस बात को देखकर यही कहना चाहता था की आज के समय मैं किशोरों के दर्द या दिल का हाल के बारे में जरूर ध्यान देना चाहिए...  आजकल के किशोरों को हमसे ज्यादा टेंशन होती है... जिसको वह बताते नहीं और अन्दर ही अन्दर उसको झेलते रहते है... हमको चाहिए के अपने बच्चों का ख्याल पूरी तरह से करें और उनकी हर बात पर गौर करें उनसे पुरे दिन का हाल चाल पूछना चाहिए की स्कूल या कॉलेज में क्या क्या हुआ ? और कोई तुमको परेशान तो नहीं कर रहा है या कोई ऐसे परेशानी या पढाई के मामले कोई दिक्कत आदि  हमको अपने किशोरों से बहुत सावधानी से  और प्यार से बर्ताव करना चाहिए  उनको डाँटना नहीं चाहिए बल्कि प्यार से समझाना चाहिए तभी वह हमको अपने दिल की बात खुलकर बताएँगे  और फिर ऐसे कोई भी घटना से हम बच सके  सच जीवन कितना कठोर होता है इसमें दर्द ज्यादा और सुख बहुत ही कम होता है फिर हमको जीना है हमारे बच्चों के लिए अपने माँ बाप के लिए


शनिवार, अप्रैल 24, 2010

रिश्ते

ये शीशे, ये धागे, ये रिश्ते, ये बंधन ....
किसे क्या पता की ये कब टूट जाए ?
वादों के सहारे ये पल-पल है जीना ....
किसे क्या पता की कब छूट जाए ?
रोज जी कर फिर मरना, और मरकर फिर जीना....
आदत ही पड सी जाती है, ये सब भूल जाने की.....
हर दम उसी का नाम हो हर सांस पर......
पर किसे क्या पता की, वो सांस कब टूट जाए ?
जिस पर राह पर चलना  जो सीखा ....
बदलते पग-पग पर  देखे तुम्हारे वो निशाँ ...
न जाने वह राह अब कहाँ से हम भटक जाए  ....
ये शीशे ये धागे ये रिश्ते ये बंधन .....
किसे क्या पता की ये कब टूट जाए ?

शनिवार, अप्रैल 10, 2010

प्रगति बनाम सुरक्षा

 भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया उसका मूल आधार  स्थिरता और सुरक्षा की भावना  थी .. इस दृष्टी से वह उन  तमाम सभ्यताओं से  कहीं अधिक सफल रही जिनका उदय  पश्चिम मैं हुआ था.. वर्ण-व्यवस्था और संयुक्त परिवारों पर आधारित सामाजिक ढाँचे ने इस उद्शेय को पूरा करने में सहायता की ...यह व्यवस्था अच्छे-बुरे के भेद को मिटाकर सबको एक स्तर पर ले आती है और इस तरह व्यक्तिवाद की भूमिका इसमें बहुत कम रह जाती है ...यह दिलचस्प बात है की जहाँ भारतीय दर्शन अत्यधिक व्यक्तिवादी है और उसकी लगभग  सारी चिंता व्यक्ति के विकास को लेकर है वहाँ भारत का सामाजिक ढांचा सामुदायिक था और उसमे सामाजिक और सामुदायिक रीति -रिवाजों का कड़ाई से पालन करना पड़ता था...
 इस सारी पाबंदी के बावजूद पुरे समुदाय को लेकर बहुत लचीलापन भी था... ऐसा कोई कानून या सामाजिक नियम नहीं था जिसे रीति-रिवाज से बदला न जा सके ...यह भी संभव था की नए समुदाय अपने अलग-अलग रीति- रिवाजों, विश्वासों और जीवन- व्यवहार को बनाए रखकर बड़े सामाजिक संगठन के अंग बने रहे इसी  लचीलेपन  ने विदेशी तत्वों को आत्मसात करने में सहायता की .....
समन्वय केवल भारत में बाहर से आने वाले विभेन्न तत्वों के साथ नहीं किया गया, बल्कि व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन तथा  मनुष्य  और  प्रकृति  के बीच भी   समन्वय  करने का प्रयास दिखाई पड़ता है... इस सामान्य सांस्कृतिक पृष्ठभूमि  ने भारत का निर्माण  किया और इस पर विविधिता   के बावजूद एकता की मोहर लगाई राजनीतिक ढांचें के मूल में स्वशासी  ग्राम व्यवस्था थी राजा  आते-जाते रहे पर यह व्यवस्था नीवं  की तरह कायम रही बाहर से आने वाले नए लोग इस ढाँचे में सिर्फ सतही  हलचल पैदा कर पाते थे ...राज सत्ता चाहे देखने में कितनी निरकुंशता लगाती हो, रीति-रिवाजों और वैधानिक बन्धनों से कुछ इस तरह नियंत्रित रहती थी की कोई शासक  ग्राम समुदाय  के सामान्य और विशेषाधिकारों में आसानी से दखल  नहीं दे सकता था ... इन प्रचलित  अधिकारों के तहत समुदाय और व्यक्तित्व दोनों की स्वंत्रता एक हद तक सुरक्षित  रहती थी 
ऐसा लगता है की ऐसे हर तत्व  ने जो बाहर से भारत आया और जिसे भारत ने जज्ब कर लिया भारत को कुछ दिया और उससे बहुत कुछ लिया जहां वह अलग-थलग रहा, वहाँ  वह अंततें नष्ट हो गया और कभी-कभी इस प्रकिया में उसने खुद को ही या भारत को नुकसान पहुँचाया..... 

मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

दूर पेड़ की छाँव में

मैं अपने यादों के  दामन को लेकर दूर पेड़ की छाँव में बैठ गया......
मेरे मन में कुछ अँधेरा कुछ प्रकाश सा छा गया.........
अपनी काया, अपना रूप, अपने में ही खो गया.....
मेरा अंतर्मन का यथार्थ रूप कहाँ तक सीमित है ?
हर तरह से उदासी में सोचता रह गया.....
कुछ पल एहसास हुआ की जीवन मेरा कही खो गया.....
मुझे अपने दिल की बातों पर कुछ तरस सा आ गया.....
सोचा, दिल की बातों को भी सुन लूं.........
देखा तो प्रशनो का ढेर सा खड़ा हो गया......
जीवन ही एक प्रशन लगने लग गया.....
मैं खुद ही प्रशनो से उलझकर जवाब ही ढूँढता रह गया.....
खुद की हैसियत  और क़ाबलियत पर हँसता रह गया .....
मुख ने मुस्कराहट दिखानी चाही तो नयन आंसों दिखा गया ......
तभी ठंडी हवा का झोंका आया.......
और एक पल में  जाग गया मैं .......
फिर वही वर्तमान जीवन में आ गया........
जिंदगी नीरस लगी पर सब सहता ही रह गया ......
जिंदगी नीरस लगी पर सब सहता ही रह गया.......