कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

रविवार, दिसंबर 27, 2009

सपना हकीकत का


करता हूँ एक ऐसे वक़्त का इंतज़ार,
जब हम तुम मिला करेंगे .....
वह समां, वह नदी का किनारा, जब हम तुम घुमा फिरा करेंगे .....
वक़्त के लहजे में हम एक दुसरे से अपने दिल की बात किया करेंगे....
एक दिल अगर रूठ गया तो बैठकर उसको मनाया करेंगे.........
नजारे इतने सुंदर लगेंगे की हम तुम बैठ उसको निहारा करेंगे......
तुम्हारी साँसों की खुशबू को हम अपनी साँसों में बसाया करेंगे......
तुम्हारी याद जितनी भी आई थी उस याद को बैठकर सहलाया करेंगे.......
वक़्त के साथ छुपेंगे हम और वक़्त के साथ उग जाया करेंगे.....
दूर उजाले से कह दो की इतना उजाला भर दो की उस से हम तुमको निहारे करेंगे......
जब शाम ढले तुम जुदा हुए तो एक दुसरे का दिल ले जाया करेंगे.......
जब रात की समेट में याद आये तो एक दुसरे को याद किया करेंगे........
चाँद की चांदिनी जब फ़ैल जाए तो उस से पैगाम भिजवाया करेंगे........
वक़्त का सहर हम तुम इसी तरह से बिताया करेंगे.......
बोलो प्रमेन्द्र क्या हम ऐसा करेंगे ?
बोलो प्रमेन्द्र क्या हम ऐसा करेंगे ?

स्मिरितियों की परिधि में


स्मिरितियों की परिधि में फिर से बंध सा जाता हूँ .....
कभी मुक्त तो कभी कैद सा पाता हूँ .......
जीवन का संघर्ष देखकर कुछ घबरा सा जाता हूँ........
सोचते सोचते याद आ जाता वह सुनहरा अतीत......
जिसमे अपनी सुखानुभूति का एहसास पाता हूँ........
पल पल में प्रतारण और पल में वियोग इनसे विचलित हो जाता हूँ.......
घूमते है वह दृश्य शूल बनकर नयनपथ के आगे ,
झरते है आँसू और असीम वेदना से विवश हो जाता हूँ.......
तुम्हारी स्मिरितियों का घेराव कमजो़र निबल कर देता है ......
जीवन के ये गम डूबने के लिए किसी शराब से कम नहीं,
डूबते शराब से भी है किन्तु गम का भी कोई जवाब ही नहीं.......
विस्मय भाव से आँखें टुकर कर देखती है .......
मृत्युं की दस्खत भी आवाज देकर दूर चली जाती है......
रुक जाते है कदम, और बंध जाते है स्मिरितियों के उन घेरों में,
वह रिश्ता जो बना था ख़तम होने के लिए,
उस रिश्ते की परिधि में कैद पाते अपने को......
कुछ टूट गए, कुछ बने ,कुछ बनते ही बिगढ़ गए.....
वही कम्पित लहराते हाथ,
दूर तक देखती गुमसुम पथराईं आँखें डगमगाते कमजौर आशा को लिए,
शायद अभी भी मुक्त हो जाए स्मिरित्यों के घेरों से......
जीवन की विडंबना और तरसती हुई आँखों से ,
भर जायेगी जिंदगी की किताब बेदाग़ अफसानो से......
मिटते रहेंगे हम जैसे हजारों तुम्हारी प्रेम की राहों से......

मजबूरियां


दूरियों के दौर मै ......
मजबूरियां ख़तम हो जाती है......
तुम्हारी चाहत की परछाई से.......
वोह और भी पास नजर आती है......
मजबूरी को समझूं या न समझूं .............
पर इश्क को समझना और भी आसान होगा...............
दूर तो तुम करो या न करो...............
पर निकट हमको पाना आसान होगा...........................
न तुम हटोगे न हम मिटेंगे ..............
पर यादो की किश्ती का फिर एक नया एक मुकाम होगा............
चाहे धागा टूटकर भी गाँठ बन जाए.................................
उस गाँठ पर ही इश्क का मकान बनाना ज्यादा आसान होगा.......................
ये सच है इश्क की गहराई तो किसी को मालूम नहीं ........................
डूबकर गर इश्क नापना भी चाहे तो क्या हुआ...................
अभिमानी सागर का तो इश्क मै झुकना ही निश्चित ही था ....................
जानना भी चाहे खुद सागर इश्क की गहराई .....................
वह खुद हो जाता है असहाय .......
जितना भी गहरा सागर ....................
उस से भी गहरा प्यार...................
ये कैसा है रुखसार...............
जितना भी करे अभिमान सागर...................
प्यार को भी अपने आगोश मै ले ले सागर...............
पर प्यार हो या मीत...................
यही जीवन के है रीत...................
नष्ट न हुआ प्यार कभी पर अमर तो हो ही जाता है .......................
कह दो उस सागर को अपनी गहराई पर ही अभिमान करे...................
प्यार हो या उसकी तरुनाई .........
सागर करेगा हमेशा उस से अपने जीवन की दुहाई .........
यही जीवन का एक कटु सत्य है मेरे भाई ....................
यही जीवन का एक कटु सत्य है मेरे भाई .....................

प्यार के रोग को संभालू कैसे ......


दो घडी बात कर दिल में अगर कोई समा जायेगा......
आँखों ही आँखों में वह सितारा बन जायेगा.......
वक़्त के साथ वह छीप जायेगा ..........
आप ही बताओ की हमारा हाल क्या हो जाएगा.......
हम क्या सह रहे है उनके लिए कौन उनको बतायेगा .................
दूरियां रहकर भी नजदीकियों से मुहब्बत करने लगे..............
इतने फासले तय करके भी कैसे पहुँच पाउँगा ...........
न करूँगा इजहार तो वक़्त ही गुजर जाएगा..................
दिल तो तमाम उम्र भर उनका चेहरा देखता रह जाएगा.................
मन तो रोकता है अपने को पर दिल उसके देखते ही दौड़ जाएगा ............
क्या कहूँ यह बेकरारी मुहब्बत सनम सही जाती नहीं...........
अपने आप से बांध कर भी मुहब्बत तो दबी जाती नहीं...............
बहुत कुछ न कह भी बहुत कुछ वह सुनाती ही रही.....................
रहे न रहे हम गर्दिशे जमाने की इंतज़ार अब तो सहा जाता नहीं.......
गुजरा हूँ जब तेरी दीवारे औ दर की राहों से ........
चाहते हुए भी न देखता हूँ पर दिल देख जाता है तुमको अपनी निगाहों से ................
फिर वही हलचल वही कुछ कुछ कह रहा है हमसे.......
क्यों अपने आपको तड़पाते हो अब कह भी दो उनसे.......
हम क्या कहें..... कैसे कहें..... शायद इस मुसीबत में हैं फसें .....
इश्क की मार बहुत जालिम है इन आँखों से सहें कैसे......
उम्र भर सब रोगों को संभाला है .......
पर इस प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे........
हाय प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे........

पर इस प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे........
हाय प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे......
दीपक शर्मा

बुधवार, दिसंबर 02, 2009

मन आज उदास है

आज कोई दूर , कोई पास है,

फ़िर भी जाने क्यों मन आज उदास है ?

आज सूनापन भी मुझसे बोलता,

पात पीपल पर भी कोई डोलता,

ठिठकी-सी है वायु, थका सा नीर है,

सहमी सहमी रात,चाँद गंभीर है,

गुपचुप धरती, गुमसुम सब आकाश है,

फ़िर भी जाने क्यों मन आज उदास है ?

TUM HO TO SIRF HAMAARE LIYE

KABHI - KABHI

BAHUT ACHHE LOG MILTE HAI

JINDAGI KE IS LAMBE SAFAR ME......

MEETHE SI YAADEN LIYE.......

THORI SI MULAAKATEN LIYE......

JINDAGI AUR JINDAGI KE ARMAANO KE LIYE......

BAAR-BAAR YAHI KEHTE RAHENGE.......

TUMHAARE LIYE........

ASMAAN KE CHAND SITAARE LIYE......

TUM HO TO SIRF HAMAARE LIYE, HAMAARE LIYE