मैं अपने यादों के दामन को लेकर दूर पेड़ की छाँव में बैठ गया......
मेरे मन में कुछ अँधेरा कुछ प्रकाश सा छा गया.........
अपनी काया, अपना रूप, अपने में ही खो गया.....
मेरा अंतर्मन का यथार्थ रूप कहाँ तक सीमित है ?
हर तरह से उदासी में सोचता रह गया.....
कुछ पल एहसास हुआ की जीवन मेरा कही खो गया.....
मुझे अपने दिल की बातों पर कुछ तरस सा आ गया.....
सोचा, दिल की बातों को भी सुन लूं.........
देखा तो प्रशनो का ढेर सा खड़ा हो गया......
जीवन ही एक प्रशन लगने लग गया.....
मैं खुद ही प्रशनो से उलझकर जवाब ही ढूँढता रह गया.....
खुद की हैसियत और क़ाबलियत पर हँसता रह गया .....
मुख ने मुस्कराहट दिखानी चाही तो नयन आंसों दिखा गया ......
तभी ठंडी हवा का झोंका आया.......
और एक पल में जाग गया मैं .......
फिर वही वर्तमान जीवन में आ गया........
जिंदगी नीरस लगी पर सब सहता ही रह गया ......
जिंदगी नीरस लगी पर सब सहता ही रह गया.......
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