कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

शनिवार, अप्रैल 24, 2010

रिश्ते

ये शीशे, ये धागे, ये रिश्ते, ये बंधन ....
किसे क्या पता की ये कब टूट जाए ?
वादों के सहारे ये पल-पल है जीना ....
किसे क्या पता की कब छूट जाए ?
रोज जी कर फिर मरना, और मरकर फिर जीना....
आदत ही पड सी जाती है, ये सब भूल जाने की.....
हर दम उसी का नाम हो हर सांस पर......
पर किसे क्या पता की, वो सांस कब टूट जाए ?
जिस पर राह पर चलना  जो सीखा ....
बदलते पग-पग पर  देखे तुम्हारे वो निशाँ ...
न जाने वह राह अब कहाँ से हम भटक जाए  ....
ये शीशे ये धागे ये रिश्ते ये बंधन .....
किसे क्या पता की ये कब टूट जाए ?

3 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर कविता. बधाई.

संजय भास्‍कर ने कहा…

कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

SANSKRITJAGAT ने कहा…

बडी ही भावुक करने वाली रचना है मित्र।


शुभकामनाएं