कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

मंगलवार, मार्च 23, 2010

कितना भी चाहे



कितना भी चाहे पर तुमसे दूर न जा सके.....
आना भी चाहे पास तुम्हारे,  पर आ न सके......
मजबूरियां खड़ी है राहों पर लेकिन हटा न सके......
जिंदगी की हर तन्हाइयों  से लड़ते हैं ......
चाहे न चाहे पर तन्हाइयों से निकल  न सके.....
तुम बैठे हो सलौने पर हमें समझ न सके ......
अपनी भी क्या जिंदगी है, चाहा तो तुम्हे बहुत.......
धोखा खाने पर भी तुम्हे भुला न  सके .....
क्या जिंदगी है अपनी यही किसी को बता भी न सके .......
पल-पल के प्रशनो का सामना भी न कर सके .....
हर शख्श पूछता है आपके बारे में,  पर कुछ भी बता न सके .......
कितना भी चाहे पर तुमसे दूर न जा सके ........
तिल-तिल कर मरना कबूल किया
पर मौत के भी करीब न जा सके ......
पर मौत के भी करीब न जा सके ......

शनिवार, मार्च 13, 2010

वायदा किया था तुमने


वायदा किया था तुमने की दोस्ती निभाओगे ........
हर पल साथ चलने की कसमे खाओगे ..........
कैसा खूबसूरत अंदाज था तुम्हारा.........
की जीवन का हर रंग दिखाओगे..........
पर ऐसा रंग भी देखने को मिलेगा .......
की एक दिन यु ही छोड़कर चले   जाओगे .........
क्या कसूर था मेरा  यही सोचते रहे हम हर पल......
कैसा जिंदगी के साथ खेला किया तुमने ........
की हर जख्म को हम यु ही मलते रह जायंगे ........
क्या कहे अब हम तुमसे यही सोचते रह जायेंगे ........
अब तुम जहां भी जाओ पर किसी को ये बात नहीं बताओगे...........
वरना कोई न करेगा दोस्ती पर विश्वास ..........
ये बात अपने सीने में दफ़न कर जाओगे.........
जिन्दा हूँ इसलिए की जीना भी एक विवशता है...........
क्या करू मेरे यार मरने के लिए भी जिंदगी की  आवश्यकता है .............
क्या करू मेरे यार मरने के लिए भी जिंदगी की  आवश्यकता है .........

रविवार, मार्च 07, 2010

एक वादा था तुमसे

एक वादा था तुमसे जो मैंने हर दिन हर पल निभाया.....
इतेफाक की बात थी की  वह तुम तक पहुँच नहीं पाया....
जुस्तुजू  जिसकी थी उसको तो न पाया हमने .....
क्या अर्ज करे तुमको  आरजू तो बहुत थी तुमसे मिलने की .....
पर खैर खुदा उस अजीज़ तक पहुँच न पाया .....
एक वादा था तुमसे जो मैंने हर दिन हर पल निभाया .....
जस्बातों का  सिलसिला एक बार फिर से लहराया .....
कौन कहता है  की हम नजरअंदाज कर गए तुमको .....
हर एक अपनी सांस को तुमसे जुड़ते हुए पाया .....
एक बार लबो पर हमारा नाम तो लेकर देखो......
खुदा कसम ये जिंदगी नाम कर देंगे तुम्हारे......
पर किस्मत ऐसी की तुम तक ही पहुँच ही न पाया......
एक वादा था जो मैंने हर दिन हर पल निभाया......
रात दिन का सिलसिला चलता रहा......
पर तुमसे मिलने का  दिन नहीं आया ......
वादे वफ़ा महोब्बत के सुनाते कैसे......
अब तो हमारे मरने का पैगाम आया......
इतेफाक की बात थी ......
एक वादा था तुमसे  जो मैंने हर दिन हर पल निभाया .....
क्या कभी तुमको इसका ख्याल आया .....
क्या कभी तुमको इसका ख्याल आया ......

शुक्रवार, मार्च 05, 2010

मुझे पता ही नहीं लग रहा है

आज मन प्रफुल्लित सा उठ रहा है....
मन उनके करीब हो रहा है......
एक लहर उठी दिल के आईने में......
दिल आईने में अपनी तस्वीर ढूंढ रहा है .......
खोई चाहत मासूम हो रही है .......
यौवन का रूप निखर रहा है.......
कौन कैसे किससे कहे  की क्या हो रहा है ........
न चाहकर  भी दिल कुछ चाह रहा है ......
हल्की सी  उदासी का आलम बिछ रहा है ......
याद आ रही है आपकी दिल चुपके से कह रहा है .....
एक कोने में बैठा यादों को पल- पल सता रहा है.....
मौन रहकर दिल बहुत कुछ बोल रहा है......
लहराती हवांए देख मन डोल रहा है ......
आ जाओ मेरी तरंगित बाहों में ......
इस मन का  जीवन प्रकाश तुम्हारी आशा से ही जल रहा है......
एक नयी आभा नयी आशा तुम्हारा इन्तजार करवा रही है.....
कितना अच्छा पल है.....
मन समझकर भी अनजान हो रहा है.....
आती है शर्म अपने आप पर.....
पर शर्मीला कोई और ही हो रहा है......
मुझे खुशी है  तुम्हारे आने की....
कौन कैसे किस पल मेरे करीब आ गया .....
मुझे पता ही नहीं लग रहा है .....

बुधवार, मार्च 03, 2010

आपका हँसना वो मुस्कराना आपका

आपका हँसना वो मुस्कराना आपका ......
प्यार के मीठे तराने गुनगुनाना आपका .......
प्यार ही प्यार में मुझे इतना सताना आपका .......
मोहब्बत नहीं है तो जानम और क्या है. ??....?..?
याद आता है मुझे आशिकी का ज़माना आपका .....
प्यार के पहले कदम पर सहम जाना आपका.........
यों ही छोटी सी बातों पर रूठ जाना आपका ......
मोहब्बत नहीं है तो जानम और क्या है ?????????
करने पर प्यार का इजहार फिर वो घबराना आपका .....
छूते ही आपको वो सिमटा जाना आपका ...... 
कुछ कहना चाहकर भी रूक जाना आपका ......
मोहब्बत नहीं है वो तो जानम और क्या है......

सोमवार, मार्च 01, 2010

उम्मीद का दायरा

कैसा प्रशन है ? मेरे सामने  वह सब कुछ कहते रहे , और हम सुनते रहे......
उम्मीद पर उम्मीद  का  दायरा ख़तम होता रहा......
सब्र किया हमने   तुम्हारे हर एक जस्बात पर ....
पर वह तो  हमारी हर रोशनी को बुझाते रहे .....
हमने तो कुछ भी नहीं किया था ......
फिर वह हर बात को क्यों गलत बताते रहे ?
हम तो हर बात पर उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे....
पर न जाने कब हाँ में ना हो गयी.....
यही बात का अफ़सोस  हम मनाते  रहे.....
मजबूर हैं, हम की हर बात का बुरा भी नहीं मान सकते .....
हर बार बुरा न मानने की बात यूँ ही जतलाते रहे  ....
मुझको तो एक बात बता दो मेरे यार......
किस बात पर वह मेरे जस्बात को अपना बताते रहे ......
जीवन की हर नैया पर मुझको बैठाने का एहसान जतलाते रहे .....
कब होगा ये एहसास उनको हमारी मौजूदगी का ......
इसी  बात का हम सब्र दिल में जलाते रहे   ......