कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

बुधवार, मई 05, 2010

पता देना

जब मंजिल मिल जाए तो पता देना......
पहचान रास्तों की हो जाए तो पता देना......
कदम-कदम चलके जो पहुँचो  कभी मुकाम पर......
अक्खड़  झाड़ लुढकती , फिसलन......
बहके कदम, भटकता मन  जो चुपके से सरक जाए.....
तो पता देना......
सरकती शाम, टपकती रात जो टल जाए....
तो पता देना.....
होगा साथ मचलता मन.......
उठेंगे कदम ठुनकता स्वप्न .....
और जब बहाल हो जाए तो पता देना......
और जब बहाल हो जाए तो पता देना.......

मंगलवार, अप्रैल 27, 2010

दर्द भरा किस्सा



जीवन में कैसे कैसे मोड़ आते है ? और क्या- क्या  देखने को मिलता है ? आज मन बहुत ही उदास था,कारण बहुत ही बड़ा था .
मेरे फैशन कॉलेज के मित्रों  में से  एक रविंदर नाम की लड़की है  ..जो बहुत ही हिम्मत वाली है, हमारी दोस्ती को आज तेरह साल हो गए पर  आज भी फ़ोन पर या इन्टरनेट  लाइन पर या  किसी function पर मिलना जुलना होता रहता है ..अभी एक दिन पहले मेरे पास फ़ोन आया की रविंदर के छोटे भाई स्वर्ग सिधार गया... मै तो हेराँ हो गया... क्योंकि कुछ ही घंटो पहेले तो मेरी रविंदर से बात हुई थी.. तब तो ऐसा न था, पर  मैं उसी वक़्त उसके घर के तरफ रवाना  हुआ... वहां पर माहौल बहुत ही ग़मगीन था,  और होने भी था  एक जवान लड़के की मौत जो हुई थी ... रविंदर के छोटे भाई का नाम रमन था... उसने इसी साल बारहवी की परीक्षा दी है, और अगले महीने परिणाम भी आने वाला है , पर उस से पहले ही ये घटना हो गयी ........ लोगो की बातों से पता चला की वह घर के पास पार्क में मृतावस्था में मिला . उस वक़्त उस पार्क मैं कोई नहीं था.. और कुछ लोग तो थे ...पर शायद किसी ने सोचा के वह बेंच पर लेटकर आराम कर रहा होगा.. लेकिन जब बहुत देर हो गयी तो कुछ लोगो को शक होने लगा..   उसको पास ही खेल रहे बच्चों के boll भी लगी पर उसने कोई ही हरकत नहीं की तब किसी ने उसको हिलाया डुलाया तो  तब जाकर पता चला की वह मर चूका है .घर वालो को जब पता चला तो आप लोग तो जानते ही की क्या हाल होता है ?उसी वक़्त पुलिस ने  बॉडी को अपने  कब्जे में करके फ़ौरन पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया  सबका कहना है की उस सतरह साल के लड़के की मौत  जहर खाने से हुई है ...
अब ये सब कैसे हुआ ?और उसने किया है, या किसी ने उसको जहर दिया  या उसने खुद खाया,  ये तो पुलिस ही पता लगाएगी 
वैसे  वह बहुत ही अच्छे स्वभाव का लड़का था किसी का वह बुरा ही नहीं कर सकता था ... पिता की मौत भी तीन साल पहले हो गयी थी ...और साथ साथ ही business भी खतम हो गया था...  रविंदर ही जैसे तैसे करके अपना घर चला रही थी..  अपने छोटे भाई का भी ध्यान रखना और उसकी पढाई का भी ख्याल करना साथ में माँ को भी देखना बहुत ही साहसिक वाला कार्य था 
इन सब मुश्किलों के होते वह शादी कैसे कर सकती थी ? पर जो भी है उसने हर हालात का सामना हँसते ही किया और आज छोटे भाई की मौत ने उसको दहला दिया ...
मैं तो इस बात को देखकर यही कहना चाहता था की आज के समय मैं किशोरों के दर्द या दिल का हाल के बारे में जरूर ध्यान देना चाहिए...  आजकल के किशोरों को हमसे ज्यादा टेंशन होती है... जिसको वह बताते नहीं और अन्दर ही अन्दर उसको झेलते रहते है... हमको चाहिए के अपने बच्चों का ख्याल पूरी तरह से करें और उनकी हर बात पर गौर करें उनसे पुरे दिन का हाल चाल पूछना चाहिए की स्कूल या कॉलेज में क्या क्या हुआ ? और कोई तुमको परेशान तो नहीं कर रहा है या कोई ऐसे परेशानी या पढाई के मामले कोई दिक्कत आदि  हमको अपने किशोरों से बहुत सावधानी से  और प्यार से बर्ताव करना चाहिए  उनको डाँटना नहीं चाहिए बल्कि प्यार से समझाना चाहिए तभी वह हमको अपने दिल की बात खुलकर बताएँगे  और फिर ऐसे कोई भी घटना से हम बच सके  सच जीवन कितना कठोर होता है इसमें दर्द ज्यादा और सुख बहुत ही कम होता है फिर हमको जीना है हमारे बच्चों के लिए अपने माँ बाप के लिए


शनिवार, अप्रैल 24, 2010

रिश्ते

ये शीशे, ये धागे, ये रिश्ते, ये बंधन ....
किसे क्या पता की ये कब टूट जाए ?
वादों के सहारे ये पल-पल है जीना ....
किसे क्या पता की कब छूट जाए ?
रोज जी कर फिर मरना, और मरकर फिर जीना....
आदत ही पड सी जाती है, ये सब भूल जाने की.....
हर दम उसी का नाम हो हर सांस पर......
पर किसे क्या पता की, वो सांस कब टूट जाए ?
जिस पर राह पर चलना  जो सीखा ....
बदलते पग-पग पर  देखे तुम्हारे वो निशाँ ...
न जाने वह राह अब कहाँ से हम भटक जाए  ....
ये शीशे ये धागे ये रिश्ते ये बंधन .....
किसे क्या पता की ये कब टूट जाए ?

शनिवार, अप्रैल 10, 2010

प्रगति बनाम सुरक्षा

 भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया उसका मूल आधार  स्थिरता और सुरक्षा की भावना  थी .. इस दृष्टी से वह उन  तमाम सभ्यताओं से  कहीं अधिक सफल रही जिनका उदय  पश्चिम मैं हुआ था.. वर्ण-व्यवस्था और संयुक्त परिवारों पर आधारित सामाजिक ढाँचे ने इस उद्शेय को पूरा करने में सहायता की ...यह व्यवस्था अच्छे-बुरे के भेद को मिटाकर सबको एक स्तर पर ले आती है और इस तरह व्यक्तिवाद की भूमिका इसमें बहुत कम रह जाती है ...यह दिलचस्प बात है की जहाँ भारतीय दर्शन अत्यधिक व्यक्तिवादी है और उसकी लगभग  सारी चिंता व्यक्ति के विकास को लेकर है वहाँ भारत का सामाजिक ढांचा सामुदायिक था और उसमे सामाजिक और सामुदायिक रीति -रिवाजों का कड़ाई से पालन करना पड़ता था...
 इस सारी पाबंदी के बावजूद पुरे समुदाय को लेकर बहुत लचीलापन भी था... ऐसा कोई कानून या सामाजिक नियम नहीं था जिसे रीति-रिवाज से बदला न जा सके ...यह भी संभव था की नए समुदाय अपने अलग-अलग रीति- रिवाजों, विश्वासों और जीवन- व्यवहार को बनाए रखकर बड़े सामाजिक संगठन के अंग बने रहे इसी  लचीलेपन  ने विदेशी तत्वों को आत्मसात करने में सहायता की .....
समन्वय केवल भारत में बाहर से आने वाले विभेन्न तत्वों के साथ नहीं किया गया, बल्कि व्यक्ति के बाहरी और भीतरी जीवन तथा  मनुष्य  और  प्रकृति  के बीच भी   समन्वय  करने का प्रयास दिखाई पड़ता है... इस सामान्य सांस्कृतिक पृष्ठभूमि  ने भारत का निर्माण  किया और इस पर विविधिता   के बावजूद एकता की मोहर लगाई राजनीतिक ढांचें के मूल में स्वशासी  ग्राम व्यवस्था थी राजा  आते-जाते रहे पर यह व्यवस्था नीवं  की तरह कायम रही बाहर से आने वाले नए लोग इस ढाँचे में सिर्फ सतही  हलचल पैदा कर पाते थे ...राज सत्ता चाहे देखने में कितनी निरकुंशता लगाती हो, रीति-रिवाजों और वैधानिक बन्धनों से कुछ इस तरह नियंत्रित रहती थी की कोई शासक  ग्राम समुदाय  के सामान्य और विशेषाधिकारों में आसानी से दखल  नहीं दे सकता था ... इन प्रचलित  अधिकारों के तहत समुदाय और व्यक्तित्व दोनों की स्वंत्रता एक हद तक सुरक्षित  रहती थी 
ऐसा लगता है की ऐसे हर तत्व  ने जो बाहर से भारत आया और जिसे भारत ने जज्ब कर लिया भारत को कुछ दिया और उससे बहुत कुछ लिया जहां वह अलग-थलग रहा, वहाँ  वह अंततें नष्ट हो गया और कभी-कभी इस प्रकिया में उसने खुद को ही या भारत को नुकसान पहुँचाया..... 

मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

दूर पेड़ की छाँव में

मैं अपने यादों के  दामन को लेकर दूर पेड़ की छाँव में बैठ गया......
मेरे मन में कुछ अँधेरा कुछ प्रकाश सा छा गया.........
अपनी काया, अपना रूप, अपने में ही खो गया.....
मेरा अंतर्मन का यथार्थ रूप कहाँ तक सीमित है ?
हर तरह से उदासी में सोचता रह गया.....
कुछ पल एहसास हुआ की जीवन मेरा कही खो गया.....
मुझे अपने दिल की बातों पर कुछ तरस सा आ गया.....
सोचा, दिल की बातों को भी सुन लूं.........
देखा तो प्रशनो का ढेर सा खड़ा हो गया......
जीवन ही एक प्रशन लगने लग गया.....
मैं खुद ही प्रशनो से उलझकर जवाब ही ढूँढता रह गया.....
खुद की हैसियत  और क़ाबलियत पर हँसता रह गया .....
मुख ने मुस्कराहट दिखानी चाही तो नयन आंसों दिखा गया ......
तभी ठंडी हवा का झोंका आया.......
और एक पल में  जाग गया मैं .......
फिर वही वर्तमान जीवन में आ गया........
जिंदगी नीरस लगी पर सब सहता ही रह गया ......
जिंदगी नीरस लगी पर सब सहता ही रह गया....... 




 

मंगलवार, मार्च 23, 2010

कितना भी चाहे



कितना भी चाहे पर तुमसे दूर न जा सके.....
आना भी चाहे पास तुम्हारे,  पर आ न सके......
मजबूरियां खड़ी है राहों पर लेकिन हटा न सके......
जिंदगी की हर तन्हाइयों  से लड़ते हैं ......
चाहे न चाहे पर तन्हाइयों से निकल  न सके.....
तुम बैठे हो सलौने पर हमें समझ न सके ......
अपनी भी क्या जिंदगी है, चाहा तो तुम्हे बहुत.......
धोखा खाने पर भी तुम्हे भुला न  सके .....
क्या जिंदगी है अपनी यही किसी को बता भी न सके .......
पल-पल के प्रशनो का सामना भी न कर सके .....
हर शख्श पूछता है आपके बारे में,  पर कुछ भी बता न सके .......
कितना भी चाहे पर तुमसे दूर न जा सके ........
तिल-तिल कर मरना कबूल किया
पर मौत के भी करीब न जा सके ......
पर मौत के भी करीब न जा सके ......

शनिवार, मार्च 13, 2010

वायदा किया था तुमने


वायदा किया था तुमने की दोस्ती निभाओगे ........
हर पल साथ चलने की कसमे खाओगे ..........
कैसा खूबसूरत अंदाज था तुम्हारा.........
की जीवन का हर रंग दिखाओगे..........
पर ऐसा रंग भी देखने को मिलेगा .......
की एक दिन यु ही छोड़कर चले   जाओगे .........
क्या कसूर था मेरा  यही सोचते रहे हम हर पल......
कैसा जिंदगी के साथ खेला किया तुमने ........
की हर जख्म को हम यु ही मलते रह जायंगे ........
क्या कहे अब हम तुमसे यही सोचते रह जायेंगे ........
अब तुम जहां भी जाओ पर किसी को ये बात नहीं बताओगे...........
वरना कोई न करेगा दोस्ती पर विश्वास ..........
ये बात अपने सीने में दफ़न कर जाओगे.........
जिन्दा हूँ इसलिए की जीना भी एक विवशता है...........
क्या करू मेरे यार मरने के लिए भी जिंदगी की  आवश्यकता है .............
क्या करू मेरे यार मरने के लिए भी जिंदगी की  आवश्यकता है .........

रविवार, मार्च 07, 2010

एक वादा था तुमसे

एक वादा था तुमसे जो मैंने हर दिन हर पल निभाया.....
इतेफाक की बात थी की  वह तुम तक पहुँच नहीं पाया....
जुस्तुजू  जिसकी थी उसको तो न पाया हमने .....
क्या अर्ज करे तुमको  आरजू तो बहुत थी तुमसे मिलने की .....
पर खैर खुदा उस अजीज़ तक पहुँच न पाया .....
एक वादा था तुमसे जो मैंने हर दिन हर पल निभाया .....
जस्बातों का  सिलसिला एक बार फिर से लहराया .....
कौन कहता है  की हम नजरअंदाज कर गए तुमको .....
हर एक अपनी सांस को तुमसे जुड़ते हुए पाया .....
एक बार लबो पर हमारा नाम तो लेकर देखो......
खुदा कसम ये जिंदगी नाम कर देंगे तुम्हारे......
पर किस्मत ऐसी की तुम तक ही पहुँच ही न पाया......
एक वादा था जो मैंने हर दिन हर पल निभाया......
रात दिन का सिलसिला चलता रहा......
पर तुमसे मिलने का  दिन नहीं आया ......
वादे वफ़ा महोब्बत के सुनाते कैसे......
अब तो हमारे मरने का पैगाम आया......
इतेफाक की बात थी ......
एक वादा था तुमसे  जो मैंने हर दिन हर पल निभाया .....
क्या कभी तुमको इसका ख्याल आया .....
क्या कभी तुमको इसका ख्याल आया ......

शुक्रवार, मार्च 05, 2010

मुझे पता ही नहीं लग रहा है

आज मन प्रफुल्लित सा उठ रहा है....
मन उनके करीब हो रहा है......
एक लहर उठी दिल के आईने में......
दिल आईने में अपनी तस्वीर ढूंढ रहा है .......
खोई चाहत मासूम हो रही है .......
यौवन का रूप निखर रहा है.......
कौन कैसे किससे कहे  की क्या हो रहा है ........
न चाहकर  भी दिल कुछ चाह रहा है ......
हल्की सी  उदासी का आलम बिछ रहा है ......
याद आ रही है आपकी दिल चुपके से कह रहा है .....
एक कोने में बैठा यादों को पल- पल सता रहा है.....
मौन रहकर दिल बहुत कुछ बोल रहा है......
लहराती हवांए देख मन डोल रहा है ......
आ जाओ मेरी तरंगित बाहों में ......
इस मन का  जीवन प्रकाश तुम्हारी आशा से ही जल रहा है......
एक नयी आभा नयी आशा तुम्हारा इन्तजार करवा रही है.....
कितना अच्छा पल है.....
मन समझकर भी अनजान हो रहा है.....
आती है शर्म अपने आप पर.....
पर शर्मीला कोई और ही हो रहा है......
मुझे खुशी है  तुम्हारे आने की....
कौन कैसे किस पल मेरे करीब आ गया .....
मुझे पता ही नहीं लग रहा है .....

बुधवार, मार्च 03, 2010

आपका हँसना वो मुस्कराना आपका

आपका हँसना वो मुस्कराना आपका ......
प्यार के मीठे तराने गुनगुनाना आपका .......
प्यार ही प्यार में मुझे इतना सताना आपका .......
मोहब्बत नहीं है तो जानम और क्या है. ??....?..?
याद आता है मुझे आशिकी का ज़माना आपका .....
प्यार के पहले कदम पर सहम जाना आपका.........
यों ही छोटी सी बातों पर रूठ जाना आपका ......
मोहब्बत नहीं है तो जानम और क्या है ?????????
करने पर प्यार का इजहार फिर वो घबराना आपका .....
छूते ही आपको वो सिमटा जाना आपका ...... 
कुछ कहना चाहकर भी रूक जाना आपका ......
मोहब्बत नहीं है वो तो जानम और क्या है......

सोमवार, मार्च 01, 2010

उम्मीद का दायरा

कैसा प्रशन है ? मेरे सामने  वह सब कुछ कहते रहे , और हम सुनते रहे......
उम्मीद पर उम्मीद  का  दायरा ख़तम होता रहा......
सब्र किया हमने   तुम्हारे हर एक जस्बात पर ....
पर वह तो  हमारी हर रोशनी को बुझाते रहे .....
हमने तो कुछ भी नहीं किया था ......
फिर वह हर बात को क्यों गलत बताते रहे ?
हम तो हर बात पर उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे....
पर न जाने कब हाँ में ना हो गयी.....
यही बात का अफ़सोस  हम मनाते  रहे.....
मजबूर हैं, हम की हर बात का बुरा भी नहीं मान सकते .....
हर बार बुरा न मानने की बात यूँ ही जतलाते रहे  ....
मुझको तो एक बात बता दो मेरे यार......
किस बात पर वह मेरे जस्बात को अपना बताते रहे ......
जीवन की हर नैया पर मुझको बैठाने का एहसान जतलाते रहे .....
कब होगा ये एहसास उनको हमारी मौजूदगी का ......
इसी  बात का हम सब्र दिल में जलाते रहे   ......

शनिवार, फ़रवरी 27, 2010

नींद और मृत्यु में अंतर


आपने शायद कभी इस मुद्दे पर ध्यान दिया हो या आपको यूँ ही ख्याल आया हो की हम रोज रात को जो सोते हैं वह एक प्रकार से हमारी  मृत्यु की रिहार्सिल है या यह भी कहा जा सकता ही की हम रोज रात को मर जाते हैं और सुबह फिर से जन्म लेते हैं.. यह बात आपको अटपटी और बेतुकी लग सकती है पर एक दृष्टि से देखें तो ये बात गलत नहीं है... यह बात आपको अटपटी और बेतुकी इसलिए लग सकती है की आप जब सुबह जागते है या कह लीजिये की नया जनम लेते है तो उसी शरीर में होते हैं जिसमे रात को सोये थे, उसी घर के के उसी बिस्तर पर जागते है है जिस पर रात को सोये थे उसी वातावरण  में जागते है जिसमे सोये थे यानी सब कुछ वैसा का वैसा ही रहता है इसलिए ऐसा ख्याल तक नहीं आता की रात को मर गए थे और सुबह फिर पैदा हो गए...  एक उदहारण  से बात जरा और साफ़ हो जायेगी.... एक दार्शनिक ने कहा की आप एक नदी में दो बार नहीं कूद सकते है... आप कहेंगे की यह  भी भला क्या बात हुई ? दो बार क्या हम उस नदी में दस बार कूद कर दिखा सकते हैं पर जरा गहरे में ,विचार करे तो पाएंगे की वाकिए हम  एक नदी में दो बार नहीं कूद सकते है क्योंकि जब हम दूसरी बार कूदेंगे तब वह पानी तो बह चूका होगा जिसमे पहली बार कूदे थे लेकिन चूँकि नदी के आसपास का दृश्य वही होता है स्थिति वही होती है ,किनारे पर बने हुए घाट और  झाड  पेड़ वही होते है तो हम समझते है की नदी वही  है जिसमे हम पहली बार कूदे थे.... बस , यही स्थिति सुबह सोकर उठने पर हमारे सामने होती हो और हम समझते है की हम वही जो इस बिस्तर में पर रात को सोये थे पर जरा दार्शनिक ढंग से सोचे तो यह बात रहस्य समझ सकेंगे की प्रकृति ने रोज सोने का जो नियम बनाया है वह शरीर को आराम देने के साथ  ही साथ यह एहसास करने के लिए भी बनाया है की एक दिन इसी  तरह से हमेशा की नींद सोना है ... रात को जब आप सुषुप्त अवस्था में  होते है  यानी ऐसी   गहरी नींद जिसमे सपना भी नहीं देखते , उस वक़्त आपको खुद अपने होने का भी ख्याल नहीं रहता है की आप है भी , आप होते हुए भी ,  नहीं  हो जाते है , उस सुषुप्त अवस्था में हम अपने अस्तित्व  का अनुभव नहीं करते हालांकि हम इसी शरीर में होते हैं तभी तो दिल धडकता   रहता है सांस चलती रहती है और रक्त संचार होता रहता है और ये सभी हमारे जीवित होने के लक्षण है  पर ये लक्षण तो शरीर के जीवित होने के होते है  जिसके होते हुए भी हम नहीं होते , हमारा अहंकार यानी " मैं हूँ " का एहसास नहीं होता  शरीर के होते हुए भी हम नहीं होते और  मृत्यु के बाद हम होते है पर तब शरीर नहीं होता बस नींद और मृत्यु में इतना ही फर्क है ...................

लफ्जों का सिलसिला रखना


अपने ख़त में यूँ ही लफ्जो का  सिलसिला रखना ......
मिलने की चाहत को यूँ ही दबाए रखना .....
दूर तुम चाहे जितना भी हो अपनी प्यार का फासला रखना.....
मिलने की  कुछ नहीं चाह ,पर यादों का सिलसिला जारी रखना.....
 कभी यूँ उजालों से वास्ता रखना .....
शमां के पास भी अपनी  दास्ताँ रखना .....
भीड़ में हम भी बैठे हैं, हर शक्स  अनजान लगता है.....
पर तुम उस भीड़ में अपनी पहचान कायम रखना ....
कुछ राज है अब मेरे सीने में....
दिन बहुत ही कम है जीने में....
तुम इस राज को कायम रखना ......
हम मरें या जीयें  खतों को अपने क़दमों की पास रखना .....
वक़्त बहुत ही कम है बस अपना एक दिन मेरे नाम कर देना.....
दूर से रूह देखेगी हमारी....
उस रूह को यूँ जी झूठा सलाम कर देना .....
फिर न लौट के आयेंगे हम,
न तुझको सतायंगे हम,
ये मेरा तुमसे वायदा है,
बस इस इरादे को कायम रखना .....
यूँ ही उजालों से वास्ता रखना .....
जब भी कभी याद आये हमारी तो अपने पास दीपक जलाए रखना....
उन खतों को सजाये रखना ............

शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

ये अंदाज नहीं बदला

तुमसे जितना भी दूर रहा, पर तुम्हारा प्यार न बदला.....
जीवन में कितनी ही मुश्किले आई, पर तुम्हारा साथ न बदला.....
हर पल तुम मुझसे  जुड़े रहे,
पर कसम से तुम्हारे जीने का अंदाज न बदला.....
कैसी है ? तुमने कसम खायी मेरे यार.......
दुनिया बदली हर वक़्त बदला ,
पर तुम्हारा वक़्त नहीं बदला...
जाम से जाम मैंने कितने टकराए....
पर तुम्हारे साथ पीने का जाम न बदला...
रात गयी और दिन भी गया ,
पर तुम्हारा दिन न बदला.......
प्यार के हर लब्ज संभाले तुमने पर ,
लब्जो का अंदाज नहीं बदला  ............
ये सारे अंदाज तो नहीं थे मेरे  दिल में...........
पर तुम्हारे प्यार का इजहार न भुला ...
करता हूँ सलाम तुम्हारे हर एक क्षण को,
इतना कुछ होकर भी मैं  तुम्हारे जैसा तो हो न सका
पर मैंने तुमको सदैव याद करने का अंदाज नहीं बदला ....

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

पथराई आँखें

उस दिन जब वृद्धा को देखा तो मेरी आँखें नम हो उठी, सारा संसार इधर से उधर हो जाए पर वृद्धा अपने स्थान से टस से मस नहीं होती, और देखा जाए होती भी कैसे?  अब तो बस सड़क ही उसका घर बन गया था जो गाँव से बाहर शहर की तरफ जाती है ..रोज जब भी मैं वहा से निकलता तो वृद्धा  की नम आँखो  को जरूर देखता .... आस-पास के मुसाफिर गुजरते हुए, उसको भीख दे जाते थे ..पर वह कैसे  बताती की वह भिखारिन नहीं  है ? वह तो सिर्फ इस राह पर अपने पुत्र  की राह देख रही है ..जो पांच साल से अपनी माँ  को इसी राह पर छोड़कर गया था.. की कुछ   धन कमाकर ही आऊंगा.. पर वह आज तक नहीं आया.. और माँ  ने अपने पुत्र का मौन हृदय से  इंतजार करते-करते यही सड़क किनारे एक बरगद के वृक्ष  के नीचे बिता दिए.. सर्दी गर्मी वर्षा  ये मौसम वृद्धा के लिए कुछ मायने नहीं रखते थे ..कभी किसी ने कुछ दे दिया तो खा लिया, और नहीं दिया तो भूखे पेट ही सो जाती थी.. इन हालातो मैं न  जाने हर वक़्त यही सोचता था  की क्या-क्या नहीं प्रश्न उठते होंगे ? इस वृद्धा के हृदय में, और कभी- कभी तो मैं वृद्धा को इतना विचलित होते देखता, की जब भी शहर से कोई बस गाँव की तरफ इस सड़क पर रूकती..  तो उसकी आँखें एकदम प्रश्न से व्याकुलित  हो उठती .. और बस के अंदर घुस कर पूरा चक्कर लगाती, कहीं उसका पुत्र वापस तो नहीं आगया...  उस समय मैं ..अपने आपको बहुत असहाय महसूस करने लगता था इन्तजार जितना करते वह और बदता  ही चला जाता है... कैसी विडम्बना होती है हृदय की ...समय का रथ चलता है ,पर इस वृद्धा का तो  इंतजार अंत होने तक नहीं  आया .. सच जीवन में कितनी कठोरता है,, जब बस से बाहर आती तो कुछ पल के लिए निराश हो जाती, पर जरा हिम्मत  तो देखो फिर से उस राह की तरफ नजर बढ़ाकर इंतजार के लिए तैयार हो जाती ..आँखें से अंश्रु  सूख चुके  थे ..अब तो लगता था, की यह आँखें कुछ पल में बंद हो जायेगी ,परन्तु नहीं.... वह  तो तैयार  थी, इंतज़ार के लिए मन कितना ही व्याकुलित हो उठता  है ? उस वृद्धा की हालात देखकर पर क्या करे यह इंतज़ार तो पता नहीं कब तक खतम होगा ..वृद्धा की आँखें बिल्कुल सूख चुकी  थी.. बालों  में तो जैसे पता नहीं कब से तेल ही नहीं लगाया बिखरे हुए बालों से उम्र  का पड़ाव नजर आता था.. और ऐसा पड़ाव जिसकी मंजिल होकर भी  मंजिल नहीं होती .. पतली दुबली सी वृद्धा की काया को देखकर लगता था.. की यह पेट के लिए नहीं ,बल्कि इंतज़ार के लिए जीवन व्यतीत कर रही थी.. फटी हुई तथा अस्त-व्यस्त  धोती जो लपेट रखी थी .पता नहीं कब से पहनी हुई थी ? कैसा यह इंतज़ार का प्रण था जो कभी पूरा होता ही न दीखता था? उस दिन मौसम बहुत खराब था... गाँव में वर्षा के कारण  काफी पानी भर चुका था... ऐसी वर्षा मैंने अपने जीवन में पहले कभी न देखी थी... बादल गरज-गरज कर अपने होने का एहसास कराते और बिजली  अंधकार में ज्यादा चमकते हुई भयानक लग रही थी... पता नहीं यह वर्षा किसी अनहोनी घटना की सूचना दे रही थी ? मन भयभीत सा हो उठा था.. की लगता है, कुछ अनहोनी न घट जाए ..सारी रात भर वर्षा होती रही ,और बादल गरजते रहे सुबह  देखा तो मौसम कुछ-कुछ साफ़ हो गया ..अचानक मेरे मन में उस वृद्धा के बारे ख्याल आया की पता नहीं रात भर उसका क्या हाल हुआ होगा? मैंने फ़टाफ़ट अपने वस्त्र बदले  और उस सड़क की तरफ  चल पड़ा.. और पहुँचते ही देखा की आस-पास भीड़   लगी हुई थी.. मेरा हृदय एकदम से विचलित हो उठा....  सब लोग आपस में विचार विमर्श कर रहे थे की बेचारी पांच साल से अपने पुत्र  का शहर से वापस आने का इंतज़ार कर रही थी...  और आज इंतज़ार करते-करते  मर गई....  लोगो के शब्द  मेरे कानों में पड रहे थे और मैंने वृद्धा की आँखों  की तरफ देखा तो दंग रह गया ...उसकी आँखें खुली  हुई थी.... और उस राह की तरफ देख रही थी जहां से अपने पुत्र को  शहर के लिए विदा किया था ... और लगता है, की वह मरने के बाद भी उसकी  आँखें पुत्र के लौट आने का इंतजार कर रही थी.. कितना दर्द भरा ... यह दृश्य था.. मन रोने लगा.. रात भर मौसम  की मार झेलते-झेलते उसने अपने इंतजार ख़तम नहीं किया, बल्कि मरने के बाद भी वह इंतजार में थी... कुछ लोगो ने वृद्धा को उठाकर उसका अंतिम -संस्कार कर दिया ...मै जब भी उस सड़क से गुजरता तो ,  उस और ज़रुर देखता जहां वृद्धा अभी भी इंतजार कर रही है यही सोचते-सोचते मेरे आँखों में अंश्रु आ जाते.. और प्रश्न भाव  से सोचता.. की पथराई आँखों ने इंतजार का फ़ासला तय करते-करते  अपनी जान दे दी ......




सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

जीवन के इस पतझड़ में



आज फिर मन की करुण पुकार उमड़ आई ....
सुन लो दुःख भरी गाथा कहती पास मेरे  चली आई ....
व्याकुल हो उठा तन-मन से झट वेदना उमड़ आई ....
बहुत बड़ी है यह  हृदय विडम्बना संभालो रे कोई निज भाई ....
चलते- चलते तड़पकर -तड़पकर भी चलना हमने सीखा ....
फिर क्यों आज कदमो में है बनी रुसवाई ?
 अश्रुओं  की बुँदे मन में कभी थी छाई....
आज क्यों बनकर शूल पग-पग में है यह आई ?
बूंद-बूंद बन झरना प्यासे को दिखलाए  अंगडाई ....
डूब गए हम इतना  की निकल   सके न  भाई  ....
जीवन के साथ सफ़र में  मृत्युं  भी चली आई  ......
कैसा है यह खेल,जीवंन  के कठोर सफ़र का....
कोई तो यह समझा दे मेरे प्यारे निज भाई ....
साथ-साथ चलता जीवन मृत्युं  के यह खेल.....
पल में मरना,पल में जीना यह बात समझने में कुछ न आई ....
है प्रिये क्या तुम देख रही हो हाल बेहाल मेरा ?
यदि हाँ कर दो तो, फिर हो जाए  जीवन में एक नया सवेरा ....
बढ़ा दो एक बार तुम हाथ, करो प्रिये तुम विशवास ....
देखो सारे जग में हमारा हो रहा है ह्वास उपहास  .....
वह दीपक मेरे मन में जिसकी थी  जलाई तुमने आस....
दीपमाला बनकर जगमगाती थी तुम मेरे आस-पास.....
पुष्पों की सी  मधुर खुशबु बन बस जाती थी तपती साँसों में.....
झनक-झनक पायल बज गुंजन बन जाती थी कर्णौं में.....
तुम ही तुम  रच बसते  थे, प्रिये मेरे हृदय में ......
विरह की यह कठोर व्यथा बड़ी चली जाती है, क्यों पल-पल में .....
याद करो, तुम याद करो वह साथ गमन वन-उपवन में....
वायदा किया था तुमने चलना जीवन के साथ सफ़र में....
अब कहाँ बसती हो तुम आजाओ इस शून्य भरे जीवन में.....
कर दो फिर एक नया बसंत जीवन के इस पतझड़ में.....
कर दो फिर एक नया बसंत जीवंन  के इस पतझड़ में ..... 

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

जीवन का अर्थ

 आज तक जीवन के अर्थ को समझ न पाया.....
कभी मरने, कभी जीने का इसने एहसास करवाया......
हर शक्स को मैंने हंस हंस के गले लगाया ...........
लेकिन अपने प्रति न  किसी को समर्पित पाया ............
सच है जीवन की इन घड़ियों की कैसी है माया  ????????
पल-पल कभी हंसाया तो कभी तड़पाया...........
चलता हूँ उन राहों पर जिनकी मंजिल नहीं होती..........
फिर भी  न जाने क्यों मैं चलकर भी लडखडाया ?????????
किसी के एहसास और स्पर्श के लिए तड़पते पाया ............
न जाने कैसी है यह  हृदय की विडंबना ?
जीवन की हर वस्तू की तलाश में अपने को नाकाम पाया ....
अपने रोते हुए दामन को प्यार के लिए खाली पाया ....
बढता चला जा  रहा हूँ फिर भी एक तलाश के लिए.....
जानता हूँ न मंजिल है न सफ़र है......
फिर भी  मेरी जिंदगी शायद यही मेरा बसर है......
खतम होगा कहां यह न खोज है न खबर है .......
बस अब तो इस "दीपक " की बुझने की कसर है .......
इन्ही कारणो से अपने को सदैव गुमनाम पाया .....
तभी तो कहता हूँ  इतना कुछ होकर भी .....
सच आज तक जीवन के अर्थ को समझ नहीं पाया  ......

शनिवार, फ़रवरी 06, 2010

एक बार चले आओ




पहली बार में ही देखते लगा की, तुम वही परवेश हो जिसका प्रेम का एक हिस्सा मेरे लिए ही बना था..
याद है, वो पल जब तुमने कॉलेज के उस परिसर में मुझको पहली बार धक्का मार गिराया था... एक शरारती भरी नजरों से, पर मैंने
कुछ नहीं कहा था... क्योंकि तुम्हारे नयनो में एक मूक मित्रता भरा निमंत्रण था.. उस मित्रता के बहाव से मै बहुत ही आनंदविभोर हो गया था....
उस दिन के बाद हम दोनों कॉलेज के परिसर की शान बन गए थे... पर जब भी तुम्हारी ख़ामोशी को देखता था, तो मुझको कुछ अजीब से छिपाव लगता था ...
ऐसा लगता था.. की मित्र भाव से तुम दूर जाना चाहते थे.. पर जा नहीं पाते थे... जब तुमने एक दिन मुझको अपनी बिमारी के बारे में बताया .. तो
मेरा हृदय विचलित सा हो गया था ऐसा लगा की मेरा हृदय थम सा गया बहुत ही निराशा से मैंने कई दिन बिताये थे... और फिर धीरे- धीरे
तुम्हारा मुख बुझने सा लगा.. तुम्हारी कैंसर की बिमारी से बेहाल होता जा रहा था .. मुझको बहुत अजीब सा एहसास हो रहा था मन करता था की समय का पहिये को रोक दूं
पर कैसे ? तुम्हारे मुख में कहीं भी कोई शिकस्त नहीं दिखती थी.. मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर बहुत ही रोता था .. और एक दिन जब तुमने मेरी बाहों में दम तोड़ा तो में मूक दर्शक बनकर रह गया था.. तुमने दम तोड़ने से पहले मुझसे एक वायदा लिया था की कभी किसी से नाराज नहीं होना और हमेशा हँसते ही रहना तुम्हारी इन बातों के पीछे न जाने क्या राज था ? पर आज तुम्हारे बाद इन वचनों की अहमीयत समझ आती है और फिर दिल बार बार कहता है मेरा की "एक बार चले आओ"

सोमवार, जनवरी 11, 2010

यही जीने का अंदाज सिखाएगा


तुम्हारी यादों का सिलसिला और ये लम्बा सफ़र ....
जीने की चाह और उसका यह बसर ....
क्यों रखते हो जीने के साथ मरने की कसर....
गर एहसास ही तो समझा हमने ......
प्यार को पूजा ही तो समझा हमने.......
फिर क्यों तोड़ते हो सारे बंधन और वह सपने...
हम तो तुम्हारे ही पास है.....
यही जीवन की एक आस है....
इश्क की गहराई तो असीम है ....
नापना तो दूर यह बहुत ही कमसीन है...........
समझा तो जाना तुम ही वो हसीन हो ....
सच हीर राँझा तो एक इतिहास है.............
नया तो हम बनाएंगे ..................
तुम्हारे दिल में रहकर इसके बीज उगाएंगे ............
फिर एक नयी कसक पैदा होगी...............
फिर प्यार का एक खेत लहराएगा...............
यही जीने का अंदाज सिखाएगा.....

रविवार, दिसंबर 27, 2009

सपना हकीकत का


करता हूँ एक ऐसे वक़्त का इंतज़ार,
जब हम तुम मिला करेंगे .....
वह समां, वह नदी का किनारा, जब हम तुम घुमा फिरा करेंगे .....
वक़्त के लहजे में हम एक दुसरे से अपने दिल की बात किया करेंगे....
एक दिल अगर रूठ गया तो बैठकर उसको मनाया करेंगे.........
नजारे इतने सुंदर लगेंगे की हम तुम बैठ उसको निहारा करेंगे......
तुम्हारी साँसों की खुशबू को हम अपनी साँसों में बसाया करेंगे......
तुम्हारी याद जितनी भी आई थी उस याद को बैठकर सहलाया करेंगे.......
वक़्त के साथ छुपेंगे हम और वक़्त के साथ उग जाया करेंगे.....
दूर उजाले से कह दो की इतना उजाला भर दो की उस से हम तुमको निहारे करेंगे......
जब शाम ढले तुम जुदा हुए तो एक दुसरे का दिल ले जाया करेंगे.......
जब रात की समेट में याद आये तो एक दुसरे को याद किया करेंगे........
चाँद की चांदिनी जब फ़ैल जाए तो उस से पैगाम भिजवाया करेंगे........
वक़्त का सहर हम तुम इसी तरह से बिताया करेंगे.......
बोलो प्रमेन्द्र क्या हम ऐसा करेंगे ?
बोलो प्रमेन्द्र क्या हम ऐसा करेंगे ?

स्मिरितियों की परिधि में


स्मिरितियों की परिधि में फिर से बंध सा जाता हूँ .....
कभी मुक्त तो कभी कैद सा पाता हूँ .......
जीवन का संघर्ष देखकर कुछ घबरा सा जाता हूँ........
सोचते सोचते याद आ जाता वह सुनहरा अतीत......
जिसमे अपनी सुखानुभूति का एहसास पाता हूँ........
पल पल में प्रतारण और पल में वियोग इनसे विचलित हो जाता हूँ.......
घूमते है वह दृश्य शूल बनकर नयनपथ के आगे ,
झरते है आँसू और असीम वेदना से विवश हो जाता हूँ.......
तुम्हारी स्मिरितियों का घेराव कमजो़र निबल कर देता है ......
जीवन के ये गम डूबने के लिए किसी शराब से कम नहीं,
डूबते शराब से भी है किन्तु गम का भी कोई जवाब ही नहीं.......
विस्मय भाव से आँखें टुकर कर देखती है .......
मृत्युं की दस्खत भी आवाज देकर दूर चली जाती है......
रुक जाते है कदम, और बंध जाते है स्मिरितियों के उन घेरों में,
वह रिश्ता जो बना था ख़तम होने के लिए,
उस रिश्ते की परिधि में कैद पाते अपने को......
कुछ टूट गए, कुछ बने ,कुछ बनते ही बिगढ़ गए.....
वही कम्पित लहराते हाथ,
दूर तक देखती गुमसुम पथराईं आँखें डगमगाते कमजौर आशा को लिए,
शायद अभी भी मुक्त हो जाए स्मिरित्यों के घेरों से......
जीवन की विडंबना और तरसती हुई आँखों से ,
भर जायेगी जिंदगी की किताब बेदाग़ अफसानो से......
मिटते रहेंगे हम जैसे हजारों तुम्हारी प्रेम की राहों से......

मजबूरियां


दूरियों के दौर मै ......
मजबूरियां ख़तम हो जाती है......
तुम्हारी चाहत की परछाई से.......
वोह और भी पास नजर आती है......
मजबूरी को समझूं या न समझूं .............
पर इश्क को समझना और भी आसान होगा...............
दूर तो तुम करो या न करो...............
पर निकट हमको पाना आसान होगा...........................
न तुम हटोगे न हम मिटेंगे ..............
पर यादो की किश्ती का फिर एक नया एक मुकाम होगा............
चाहे धागा टूटकर भी गाँठ बन जाए.................................
उस गाँठ पर ही इश्क का मकान बनाना ज्यादा आसान होगा.......................
ये सच है इश्क की गहराई तो किसी को मालूम नहीं ........................
डूबकर गर इश्क नापना भी चाहे तो क्या हुआ...................
अभिमानी सागर का तो इश्क मै झुकना ही निश्चित ही था ....................
जानना भी चाहे खुद सागर इश्क की गहराई .....................
वह खुद हो जाता है असहाय .......
जितना भी गहरा सागर ....................
उस से भी गहरा प्यार...................
ये कैसा है रुखसार...............
जितना भी करे अभिमान सागर...................
प्यार को भी अपने आगोश मै ले ले सागर...............
पर प्यार हो या मीत...................
यही जीवन के है रीत...................
नष्ट न हुआ प्यार कभी पर अमर तो हो ही जाता है .......................
कह दो उस सागर को अपनी गहराई पर ही अभिमान करे...................
प्यार हो या उसकी तरुनाई .........
सागर करेगा हमेशा उस से अपने जीवन की दुहाई .........
यही जीवन का एक कटु सत्य है मेरे भाई ....................
यही जीवन का एक कटु सत्य है मेरे भाई .....................

प्यार के रोग को संभालू कैसे ......


दो घडी बात कर दिल में अगर कोई समा जायेगा......
आँखों ही आँखों में वह सितारा बन जायेगा.......
वक़्त के साथ वह छीप जायेगा ..........
आप ही बताओ की हमारा हाल क्या हो जाएगा.......
हम क्या सह रहे है उनके लिए कौन उनको बतायेगा .................
दूरियां रहकर भी नजदीकियों से मुहब्बत करने लगे..............
इतने फासले तय करके भी कैसे पहुँच पाउँगा ...........
न करूँगा इजहार तो वक़्त ही गुजर जाएगा..................
दिल तो तमाम उम्र भर उनका चेहरा देखता रह जाएगा.................
मन तो रोकता है अपने को पर दिल उसके देखते ही दौड़ जाएगा ............
क्या कहूँ यह बेकरारी मुहब्बत सनम सही जाती नहीं...........
अपने आप से बांध कर भी मुहब्बत तो दबी जाती नहीं...............
बहुत कुछ न कह भी बहुत कुछ वह सुनाती ही रही.....................
रहे न रहे हम गर्दिशे जमाने की इंतज़ार अब तो सहा जाता नहीं.......
गुजरा हूँ जब तेरी दीवारे औ दर की राहों से ........
चाहते हुए भी न देखता हूँ पर दिल देख जाता है तुमको अपनी निगाहों से ................
फिर वही हलचल वही कुछ कुछ कह रहा है हमसे.......
क्यों अपने आपको तड़पाते हो अब कह भी दो उनसे.......
हम क्या कहें..... कैसे कहें..... शायद इस मुसीबत में हैं फसें .....
इश्क की मार बहुत जालिम है इन आँखों से सहें कैसे......
उम्र भर सब रोगों को संभाला है .......
पर इस प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे........
हाय प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे........

पर इस प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे........
हाय प्यार के दर्द भरे रोग को संभालू कैसे......
दीपक शर्मा

बुधवार, दिसंबर 02, 2009

मन आज उदास है

आज कोई दूर , कोई पास है,

फ़िर भी जाने क्यों मन आज उदास है ?

आज सूनापन भी मुझसे बोलता,

पात पीपल पर भी कोई डोलता,

ठिठकी-सी है वायु, थका सा नीर है,

सहमी सहमी रात,चाँद गंभीर है,

गुपचुप धरती, गुमसुम सब आकाश है,

फ़िर भी जाने क्यों मन आज उदास है ?

TUM HO TO SIRF HAMAARE LIYE

KABHI - KABHI

BAHUT ACHHE LOG MILTE HAI

JINDAGI KE IS LAMBE SAFAR ME......

MEETHE SI YAADEN LIYE.......

THORI SI MULAAKATEN LIYE......

JINDAGI AUR JINDAGI KE ARMAANO KE LIYE......

BAAR-BAAR YAHI KEHTE RAHENGE.......

TUMHAARE LIYE........

ASMAAN KE CHAND SITAARE LIYE......

TUM HO TO SIRF HAMAARE LIYE, HAMAARE LIYE