दूरियों के दौर मै ......
मजबूरियां ख़तम हो जाती है......
तुम्हारी चाहत की परछाई से.......
वोह और भी पास नजर आती है......
मजबूरी को समझूं या न समझूं .............
पर इश्क को समझना और भी आसान होगा...............
दूर तो तुम करो या न करो...............
पर निकट हमको पाना आसान होगा...........................
न तुम हटोगे न हम मिटेंगे ..............
पर यादो की किश्ती का फिर एक नया एक मुकाम होगा............
चाहे धागा टूटकर भी गाँठ बन जाए.................................
उस गाँठ पर ही इश्क का मकान बनाना ज्यादा आसान होगा.......................
ये सच है इश्क की गहराई तो किसी को मालूम नहीं ........................
डूबकर गर इश्क नापना भी चाहे तो क्या हुआ...................
अभिमानी सागर का तो इश्क मै झुकना ही निश्चित ही था ....................
जानना भी चाहे खुद सागर इश्क की गहराई .....................
वह खुद हो जाता है असहाय .......
जितना भी गहरा सागर ....................
उस से भी गहरा प्यार...................
ये कैसा है रुखसार...............
जितना भी करे अभिमान सागर...................
प्यार को भी अपने आगोश मै ले ले सागर...............
पर प्यार हो या मीत...................
यही जीवन के है रीत...................
नष्ट न हुआ प्यार कभी पर अमर तो हो ही जाता है .......................
कह दो उस सागर को अपनी गहराई पर ही अभिमान करे...................
प्यार हो या उसकी तरुनाई .........
सागर करेगा हमेशा उस से अपने जीवन की दुहाई .........
यही जीवन का एक कटु सत्य है मेरे भाई ....................
यही जीवन का एक कटु सत्य है मेरे भाई .....................