
करता हूँ एक ऐसे वक़्त का इंतज़ार,
जब हम तुम मिला करेंगे .....
वह समां, वह नदी का किनारा, जब हम तुम घुमा फिरा करेंगे .....
वक़्त के लहजे में हम एक दुसरे से अपने दिल की बात किया करेंगे....
एक दिल अगर रूठ गया तो बैठकर उसको मनाया करेंगे.........
नजारे इतने सुंदर लगेंगे की हम तुम बैठ उसको निहारा करेंगे......
तुम्हारी साँसों की खुशबू को हम अपनी साँसों में बसाया करेंगे......
तुम्हारी याद जितनी भी आई थी उस याद को बैठकर सहलाया करेंगे.......
वक़्त के साथ छुपेंगे हम और वक़्त के साथ उग जाया करेंगे.....
दूर उजाले से कह दो की इतना उजाला भर दो की उस से हम तुमको निहारे करेंगे......
जब शाम ढले तुम जुदा हुए तो एक दुसरे का दिल ले जाया करेंगे.......
जब रात की समेट में याद आये तो एक दुसरे को याद किया करेंगे........
चाँद की चांदिनी जब फ़ैल जाए तो उस से पैगाम भिजवाया करेंगे........
वक़्त का सहर हम तुम इसी तरह से बिताया करेंगे.......
बोलो प्रमेन्द्र क्या हम ऐसा करेंगे ?
बोलो प्रमेन्द्र क्या हम ऐसा करेंगे ?