शनिवार, मार्च 13, 2010
वायदा किया था तुमने
वायदा किया था तुमने की दोस्ती निभाओगे ........
हर पल साथ चलने की कसमे खाओगे ..........
कैसा खूबसूरत अंदाज था तुम्हारा.........
की जीवन का हर रंग दिखाओगे..........
पर ऐसा रंग भी देखने को मिलेगा .......
की एक दिन यु ही छोड़कर चले जाओगे .........
क्या कसूर था मेरा यही सोचते रहे हम हर पल......
कैसा जिंदगी के साथ खेला किया तुमने ........
की हर जख्म को हम यु ही मलते रह जायंगे ........
क्या कहे अब हम तुमसे यही सोचते रह जायेंगे ........
अब तुम जहां भी जाओ पर किसी को ये बात नहीं बताओगे...........
वरना कोई न करेगा दोस्ती पर विश्वास ..........
ये बात अपने सीने में दफ़न कर जाओगे.........
जिन्दा हूँ इसलिए की जीना भी एक विवशता है...........
क्या करू मेरे यार मरने के लिए भी जिंदगी की आवश्यकता है .............
क्या करू मेरे यार मरने के लिए भी जिंदगी की आवश्यकता है .........
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1 टिप्पणी:
दर्द से भरी अच्छी रचना । शुभकामनायें
कृप्या वर्ड्वेरीफ़िकेशन हटा दे टिप्पणी करेन में सुविधा होती है । आभार
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