कैसा प्रशन है ? मेरे सामने वह सब कुछ कहते रहे , और हम सुनते रहे......
उम्मीद पर उम्मीद का दायरा ख़तम होता रहा......
सब्र किया हमने तुम्हारे हर एक जस्बात पर ....
पर वह तो हमारी हर रोशनी को बुझाते रहे .....
हमने तो कुछ भी नहीं किया था ......
फिर वह हर बात को क्यों गलत बताते रहे ?
हम तो हर बात पर उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे....
पर न जाने कब हाँ में ना हो गयी.....
यही बात का अफ़सोस हम मनाते रहे.....
मजबूर हैं, हम की हर बात का बुरा भी नहीं मान सकते .....
हर बार बुरा न मानने की बात यूँ ही जतलाते रहे ....
मुझको तो एक बात बता दो मेरे यार......
किस बात पर वह मेरे जस्बात को अपना बताते रहे ......
जीवन की हर नैया पर मुझको बैठाने का एहसान जतलाते रहे .....
कब होगा ये एहसास उनको हमारी मौजूदगी का ......
इसी बात का हम सब्र दिल में जलाते रहे ......
उम्मीद पर उम्मीद का दायरा ख़तम होता रहा......
सब्र किया हमने तुम्हारे हर एक जस्बात पर ....
पर वह तो हमारी हर रोशनी को बुझाते रहे .....
हमने तो कुछ भी नहीं किया था ......
फिर वह हर बात को क्यों गलत बताते रहे ?
हम तो हर बात पर उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहे....
पर न जाने कब हाँ में ना हो गयी.....
यही बात का अफ़सोस हम मनाते रहे.....
मजबूर हैं, हम की हर बात का बुरा भी नहीं मान सकते .....
हर बार बुरा न मानने की बात यूँ ही जतलाते रहे ....
मुझको तो एक बात बता दो मेरे यार......
किस बात पर वह मेरे जस्बात को अपना बताते रहे ......
जीवन की हर नैया पर मुझको बैठाने का एहसान जतलाते रहे .....
कब होगा ये एहसास उनको हमारी मौजूदगी का ......
इसी बात का हम सब्र दिल में जलाते रहे ......
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