आज मन प्रफुल्लित सा उठ रहा है....
मन उनके करीब हो रहा है......
एक लहर उठी दिल के आईने में......
दिल आईने में अपनी तस्वीर ढूंढ रहा है .......
खोई चाहत मासूम हो रही है .......
यौवन का रूप निखर रहा है.......
कौन कैसे किससे कहे की क्या हो रहा है ........
न चाहकर भी दिल कुछ चाह रहा है ......
हल्की सी उदासी का आलम बिछ रहा है ......
याद आ रही है आपकी दिल चुपके से कह रहा है .....
एक कोने में बैठा यादों को पल- पल सता रहा है.....
मौन रहकर दिल बहुत कुछ बोल रहा है......
लहराती हवांए देख मन डोल रहा है ......
आ जाओ मेरी तरंगित बाहों में ......
इस मन का जीवन प्रकाश तुम्हारी आशा से ही जल रहा है......
एक नयी आभा नयी आशा तुम्हारा इन्तजार करवा रही है.....
कितना अच्छा पल है.....
मन समझकर भी अनजान हो रहा है.....
आती है शर्म अपने आप पर.....
पर शर्मीला कोई और ही हो रहा है......
मुझे खुशी है तुम्हारे आने की....
कौन कैसे किस पल मेरे करीब आ गया .....
मुझे पता ही नहीं लग रहा है .....
शुक्रवार, मार्च 05, 2010
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