कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

जीवन का अर्थ

 आज तक जीवन के अर्थ को समझ न पाया.....
कभी मरने, कभी जीने का इसने एहसास करवाया......
हर शक्स को मैंने हंस हंस के गले लगाया ...........
लेकिन अपने प्रति न  किसी को समर्पित पाया ............
सच है जीवन की इन घड़ियों की कैसी है माया  ????????
पल-पल कभी हंसाया तो कभी तड़पाया...........
चलता हूँ उन राहों पर जिनकी मंजिल नहीं होती..........
फिर भी  न जाने क्यों मैं चलकर भी लडखडाया ?????????
किसी के एहसास और स्पर्श के लिए तड़पते पाया ............
न जाने कैसी है यह  हृदय की विडंबना ?
जीवन की हर वस्तू की तलाश में अपने को नाकाम पाया ....
अपने रोते हुए दामन को प्यार के लिए खाली पाया ....
बढता चला जा  रहा हूँ फिर भी एक तलाश के लिए.....
जानता हूँ न मंजिल है न सफ़र है......
फिर भी  मेरी जिंदगी शायद यही मेरा बसर है......
खतम होगा कहां यह न खोज है न खबर है .......
बस अब तो इस "दीपक " की बुझने की कसर है .......
इन्ही कारणो से अपने को सदैव गुमनाम पाया .....
तभी तो कहता हूँ  इतना कुछ होकर भी .....
सच आज तक जीवन के अर्थ को समझ नहीं पाया  ......

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