कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

पथराई आँखें

उस दिन जब वृद्धा को देखा तो मेरी आँखें नम हो उठी, सारा संसार इधर से उधर हो जाए पर वृद्धा अपने स्थान से टस से मस नहीं होती, और देखा जाए होती भी कैसे?  अब तो बस सड़क ही उसका घर बन गया था जो गाँव से बाहर शहर की तरफ जाती है ..रोज जब भी मैं वहा से निकलता तो वृद्धा  की नम आँखो  को जरूर देखता .... आस-पास के मुसाफिर गुजरते हुए, उसको भीख दे जाते थे ..पर वह कैसे  बताती की वह भिखारिन नहीं  है ? वह तो सिर्फ इस राह पर अपने पुत्र  की राह देख रही है ..जो पांच साल से अपनी माँ  को इसी राह पर छोड़कर गया था.. की कुछ   धन कमाकर ही आऊंगा.. पर वह आज तक नहीं आया.. और माँ  ने अपने पुत्र का मौन हृदय से  इंतजार करते-करते यही सड़क किनारे एक बरगद के वृक्ष  के नीचे बिता दिए.. सर्दी गर्मी वर्षा  ये मौसम वृद्धा के लिए कुछ मायने नहीं रखते थे ..कभी किसी ने कुछ दे दिया तो खा लिया, और नहीं दिया तो भूखे पेट ही सो जाती थी.. इन हालातो मैं न  जाने हर वक़्त यही सोचता था  की क्या-क्या नहीं प्रश्न उठते होंगे ? इस वृद्धा के हृदय में, और कभी- कभी तो मैं वृद्धा को इतना विचलित होते देखता, की जब भी शहर से कोई बस गाँव की तरफ इस सड़क पर रूकती..  तो उसकी आँखें एकदम प्रश्न से व्याकुलित  हो उठती .. और बस के अंदर घुस कर पूरा चक्कर लगाती, कहीं उसका पुत्र वापस तो नहीं आगया...  उस समय मैं ..अपने आपको बहुत असहाय महसूस करने लगता था इन्तजार जितना करते वह और बदता  ही चला जाता है... कैसी विडम्बना होती है हृदय की ...समय का रथ चलता है ,पर इस वृद्धा का तो  इंतजार अंत होने तक नहीं  आया .. सच जीवन में कितनी कठोरता है,, जब बस से बाहर आती तो कुछ पल के लिए निराश हो जाती, पर जरा हिम्मत  तो देखो फिर से उस राह की तरफ नजर बढ़ाकर इंतजार के लिए तैयार हो जाती ..आँखें से अंश्रु  सूख चुके  थे ..अब तो लगता था, की यह आँखें कुछ पल में बंद हो जायेगी ,परन्तु नहीं.... वह  तो तैयार  थी, इंतज़ार के लिए मन कितना ही व्याकुलित हो उठता  है ? उस वृद्धा की हालात देखकर पर क्या करे यह इंतज़ार तो पता नहीं कब तक खतम होगा ..वृद्धा की आँखें बिल्कुल सूख चुकी  थी.. बालों  में तो जैसे पता नहीं कब से तेल ही नहीं लगाया बिखरे हुए बालों से उम्र  का पड़ाव नजर आता था.. और ऐसा पड़ाव जिसकी मंजिल होकर भी  मंजिल नहीं होती .. पतली दुबली सी वृद्धा की काया को देखकर लगता था.. की यह पेट के लिए नहीं ,बल्कि इंतज़ार के लिए जीवन व्यतीत कर रही थी.. फटी हुई तथा अस्त-व्यस्त  धोती जो लपेट रखी थी .पता नहीं कब से पहनी हुई थी ? कैसा यह इंतज़ार का प्रण था जो कभी पूरा होता ही न दीखता था? उस दिन मौसम बहुत खराब था... गाँव में वर्षा के कारण  काफी पानी भर चुका था... ऐसी वर्षा मैंने अपने जीवन में पहले कभी न देखी थी... बादल गरज-गरज कर अपने होने का एहसास कराते और बिजली  अंधकार में ज्यादा चमकते हुई भयानक लग रही थी... पता नहीं यह वर्षा किसी अनहोनी घटना की सूचना दे रही थी ? मन भयभीत सा हो उठा था.. की लगता है, कुछ अनहोनी न घट जाए ..सारी रात भर वर्षा होती रही ,और बादल गरजते रहे सुबह  देखा तो मौसम कुछ-कुछ साफ़ हो गया ..अचानक मेरे मन में उस वृद्धा के बारे ख्याल आया की पता नहीं रात भर उसका क्या हाल हुआ होगा? मैंने फ़टाफ़ट अपने वस्त्र बदले  और उस सड़क की तरफ  चल पड़ा.. और पहुँचते ही देखा की आस-पास भीड़   लगी हुई थी.. मेरा हृदय एकदम से विचलित हो उठा....  सब लोग आपस में विचार विमर्श कर रहे थे की बेचारी पांच साल से अपने पुत्र  का शहर से वापस आने का इंतज़ार कर रही थी...  और आज इंतज़ार करते-करते  मर गई....  लोगो के शब्द  मेरे कानों में पड रहे थे और मैंने वृद्धा की आँखों  की तरफ देखा तो दंग रह गया ...उसकी आँखें खुली  हुई थी.... और उस राह की तरफ देख रही थी जहां से अपने पुत्र को  शहर के लिए विदा किया था ... और लगता है, की वह मरने के बाद भी उसकी  आँखें पुत्र के लौट आने का इंतजार कर रही थी.. कितना दर्द भरा ... यह दृश्य था.. मन रोने लगा.. रात भर मौसम  की मार झेलते-झेलते उसने अपने इंतजार ख़तम नहीं किया, बल्कि मरने के बाद भी वह इंतजार में थी... कुछ लोगो ने वृद्धा को उठाकर उसका अंतिम -संस्कार कर दिया ...मै जब भी उस सड़क से गुजरता तो ,  उस और ज़रुर देखता जहां वृद्धा अभी भी इंतजार कर रही है यही सोचते-सोचते मेरे आँखों में अंश्रु आ जाते.. और प्रश्न भाव  से सोचता.. की पथराई आँखों ने इंतजार का फ़ासला तय करते-करते  अपनी जान दे दी ......




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