कुछ कहना है ......

स्कूल टाइम से ही मुझको कुछ न कुछ लिखने का शौक था... और वह कॉलेज टाइम में जाकर ज्यादा परिपक्व होने लगा... इस टाइम में मैंने बहुत ही रचनायें लिखी पर कभी उन रचनायों को किसी को दिखाया नहीं, कुछ रचनाएं न जाने कहाँ खो गयी और कुछ घर के एक कोने में पड़ी रही , एक दिन उनमे से कुछ रचना हाथ में लग गयी और फिर मन में लिखने की भावना जाग गयी ...याद आ गए मुझको कुछ बीते पल जब ये रचनाएं लिखी थी .... आज उन्ही रचनायों को पेश कर रहा हूँ ...पर न जाने पसंद आये न आये फिर भी एक छोटी सी कोशिश कर ही बैठा और एक ब्लॉग बनाया जिसमे ये सब कुछ जारी कर दिया ....जो आज सब सामने है यही मेरी यादगार है और कोशिश करता रहूँगा की आगे भी लिखता रहूँ ..............

कभी कभी जीवन में ऐसे पड़ाव आते है ...जब आदमी अपने आप में संकुचित हो जाता है ...ऐसे अवस्था में उसके मन की व्यथा जानना बहुत ही कठिन होती है .... और इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है, लेखन की कला, ये बात अलग है की लेखन कला इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता है ,किसी के पास लिखने के लिए बहुत कुछ होता है, पर शब्द नहीं होते है ....जिसके पास शब्द होते है, उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं होता है, पर हालात ही ऐसे परीस्थिति है ... जो सब कुछ सिखा देती है इन्ही हालातों के नज्ररिये को अच्छी तरह से परखा जाए तो आदमी अपने आपको लिखते लिखते ही मन की व्यथित अवस्था को काबू में कर लेगा .......







आप और हम

शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

ये अंदाज नहीं बदला

तुमसे जितना भी दूर रहा, पर तुम्हारा प्यार न बदला.....
जीवन में कितनी ही मुश्किले आई, पर तुम्हारा साथ न बदला.....
हर पल तुम मुझसे  जुड़े रहे,
पर कसम से तुम्हारे जीने का अंदाज न बदला.....
कैसी है ? तुमने कसम खायी मेरे यार.......
दुनिया बदली हर वक़्त बदला ,
पर तुम्हारा वक़्त नहीं बदला...
जाम से जाम मैंने कितने टकराए....
पर तुम्हारे साथ पीने का जाम न बदला...
रात गयी और दिन भी गया ,
पर तुम्हारा दिन न बदला.......
प्यार के हर लब्ज संभाले तुमने पर ,
लब्जो का अंदाज नहीं बदला  ............
ये सारे अंदाज तो नहीं थे मेरे  दिल में...........
पर तुम्हारे प्यार का इजहार न भुला ...
करता हूँ सलाम तुम्हारे हर एक क्षण को,
इतना कुछ होकर भी मैं  तुम्हारे जैसा तो हो न सका
पर मैंने तुमको सदैव याद करने का अंदाज नहीं बदला ....