
पहली बार में ही देखते लगा की, तुम वही परवेश हो जिसका प्रेम का एक हिस्सा मेरे लिए ही बना था..
याद है, वो पल जब तुमने कॉलेज के उस परिसर में मुझको पहली बार धक्का मार गिराया था... एक शरारती भरी नजरों से, पर मैंने
कुछ नहीं कहा था... क्योंकि तुम्हारे नयनो में एक मूक मित्रता भरा निमंत्रण था.. उस मित्रता के बहाव से मै बहुत ही आनंदविभोर हो गया था....
उस दिन के बाद हम दोनों कॉलेज के परिसर की शान बन गए थे... पर जब भी तुम्हारी ख़ामोशी को देखता था, तो मुझको कुछ अजीब से छिपाव लगता था ...
ऐसा लगता था.. की मित्र भाव से तुम दूर जाना चाहते थे.. पर जा नहीं पाते थे... जब तुमने एक दिन मुझको अपनी बिमारी के बारे में बताया .. तो
मेरा हृदय विचलित सा हो गया था ऐसा लगा की मेरा हृदय थम सा गया बहुत ही निराशा से मैंने कई दिन बिताये थे... और फिर धीरे- धीरे
तुम्हारा मुख बुझने सा लगा.. तुम्हारी कैंसर की बिमारी से बेहाल होता जा रहा था .. मुझको बहुत अजीब सा एहसास हो रहा था मन करता था की समय का पहिये को रोक दूं
पर कैसे ? तुम्हारे मुख में कहीं भी कोई शिकस्त नहीं दिखती थी.. मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर बहुत ही रोता था .. और एक दिन जब तुमने मेरी बाहों में दम तोड़ा तो में मूक दर्शक बनकर रह गया था.. तुमने दम तोड़ने से पहले मुझसे एक वायदा लिया था की कभी किसी से नाराज नहीं होना और हमेशा हँसते ही रहना तुम्हारी इन बातों के पीछे न जाने क्या राज था ? पर आज तुम्हारे बाद इन वचनों की अहमीयत समझ आती है और फिर दिल बार बार कहता है मेरा की "एक बार चले आओ"