आपने शायद कभी इस मुद्दे पर ध्यान दिया हो या आपको यूँ ही ख्याल आया हो की हम रोज रात को जो सोते हैं वह एक प्रकार से हमारी मृत्यु की रिहार्सिल है या यह भी कहा जा सकता ही की हम रोज रात को मर जाते हैं और सुबह फिर से जन्म लेते हैं.. यह बात आपको अटपटी और बेतुकी लग सकती है पर एक दृष्टि से देखें तो ये बात गलत नहीं है... यह बात आपको अटपटी और बेतुकी इसलिए लग सकती है की आप जब सुबह जागते है या कह लीजिये की नया जनम लेते है तो उसी शरीर में होते हैं जिसमे रात को सोये थे, उसी घर के के उसी बिस्तर पर जागते है है जिस पर रात को सोये थे उसी वातावरण में जागते है जिसमे सोये थे यानी सब कुछ वैसा का वैसा ही रहता है इसलिए ऐसा ख्याल तक नहीं आता की रात को मर गए थे और सुबह फिर पैदा हो गए... एक उदहारण से बात जरा और साफ़ हो जायेगी.... एक दार्शनिक ने कहा की आप एक नदी में दो बार नहीं कूद सकते है... आप कहेंगे की यह भी भला क्या बात हुई ? दो बार क्या हम उस नदी में दस बार कूद कर दिखा सकते हैं पर जरा गहरे में ,विचार करे तो पाएंगे की वाकिए हम एक नदी में दो बार नहीं कूद सकते है क्योंकि जब हम दूसरी बार कूदेंगे तब वह पानी तो बह चूका होगा जिसमे पहली बार कूदे थे लेकिन चूँकि नदी के आसपास का दृश्य वही होता है स्थिति वही होती है ,किनारे पर बने हुए घाट और झाड पेड़ वही होते है तो हम समझते है की नदी वही है जिसमे हम पहली बार कूदे थे.... बस , यही स्थिति सुबह सोकर उठने पर हमारे सामने होती हो और हम समझते है की हम वही जो इस बिस्तर में पर रात को सोये थे पर जरा दार्शनिक ढंग से सोचे तो यह बात रहस्य समझ सकेंगे की प्रकृति ने रोज सोने का जो नियम बनाया है वह शरीर को आराम देने के साथ ही साथ यह एहसास करने के लिए भी बनाया है की एक दिन इसी तरह से हमेशा की नींद सोना है ... रात को जब आप सुषुप्त अवस्था में होते है यानी ऐसी गहरी नींद जिसमे सपना भी नहीं देखते , उस वक़्त आपको खुद अपने होने का भी ख्याल नहीं रहता है की आप है भी , आप होते हुए भी , नहीं हो जाते है , उस सुषुप्त अवस्था में हम अपने अस्तित्व का अनुभव नहीं करते हालांकि हम इसी शरीर में होते हैं तभी तो दिल धडकता रहता है सांस चलती रहती है और रक्त संचार होता रहता है और ये सभी हमारे जीवित होने के लक्षण है पर ये लक्षण तो शरीर के जीवित होने के होते है जिसके होते हुए भी हम नहीं होते , हमारा अहंकार यानी " मैं हूँ " का एहसास नहीं होता शरीर के होते हुए भी हम नहीं होते और मृत्यु के बाद हम होते है पर तब शरीर नहीं होता बस नींद और मृत्यु में इतना ही फर्क है ...................
शनिवार, फ़रवरी 27, 2010
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1 टिप्पणी:
आपकी सारगर्भित लेख बहुत कुछ शिक्षा दे गया, मुझे नही पता था कि आप ऐसा भी लिख सकते है।
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